चलो अमरनाथ बम-बम
कश्मीर की वादी में, भोले की शादी में, बम बोले, जय शंकर की, जय शंभू नाथ की और जय कैलाशपति के उद्घोषों के बीच सैकड़ों श्रद्धालुओं का जत्था १५ जुलाई की सुबह च1की बैंक से अमरनाथ के लिए रवाना हुआ। श्रद्धालुओं में मैं भी शामिल था।
दयालाचक से उधमपुर की तरफ जाने वाले मार्ग पर हमारी गाड़ी सरपट दौड़ी जा रही थी। इस दौरान अमरनाथ गुफा के स्वरूप को लेकर मेरे मन में तरह-तरह के विचार उमड़ रहे थे। मेरे विचारों को झटका लगा जब ज6मू पुलिस ने हमें उधमपुर से करीब तीस किलोमीटर पहले रोक लिया। हमें बताया गया कि आतंकवादियों ने नरसंहार किया है। इसी वजह से यात्रा को बीच में रोका गया है। पुलिसकर्मियों ने भी दबाव डालना शुरू कर दिया।
कुछ समय की जद्दोजहद के बाद हमें स8ार किलोमीटर घूम कर उधमपुर पहुंचना पड़ा। आगे का क्षेत्र संवेदनशील था इसलिए हम लोगों ने आराम के लिए एक समुदाय भवन में पड़ाव डाला।
अगले दिन पौ फटने से पहले ही सभी श्रद्धालु अगले पड़ाव की तरफ रवाना हो गए। घुमावदार रास्ते से होते हुए कुद, पटनीटॉप, बटोट, रामबन होते हुए बनिहाल पहुंचे। बनिहाल पहुंचते-पहुंचते सूरज सिर पर चढ़ आया था। इसलिए सभी ने यहां विश्राम व अल्पाहार का निर्णय लिया। यहां कुछ स्थानीय युवकों को आतंकवादी गतिविधियों के कारण हिरासत में लिया गया था। उसके विरोध में बंद की गई मार्केट करीब दो घंटे पहले ही खुली थी। यहां लगभग एक घंटा रुकने के बाद यात्रियों ने अपनी मंजिल की ओर कूच किया।
कुछ किलोमीटर तय करने के बाद हम ज6मू और कश्मीर को जोडऩे वाले मार्ग जवाहर सुरंग केसामने थे। जवाहर सुरंग में प्रवेश करने पर सभी यात्रियों को गाड़ी से उतार लिया गया। सभी लोगों की बारीकी से तलाशी लेकर ही आगे चलने का इशारा किया गया। करीब तीस किलोमीटर लंबी सुरंग पार करके यात्रियों का जत्था कश्मीर सीमा में प्रवेश कर गया। कश्मीर सीमा में प्रवेश करत ही घुमावदार सडक़े हरी भरी घाटी, चीड़-देवदार के लंबे वृक्षों से छन कर आ रही धूप ने मन को मोह लिया।
काजीगुंड में चुंगी कर चुकाने के बाद हमारी गाड़ी खन्नाबल और अवंतीपुरा पहुंची। अवंतीपुरा सुंदर तो है ही यहंा का संबंध भारतीय क्रिकेट से बहुत गहरा है। यहां के बने क्रिकेट के बल्ले बहुत मशहूर हैं। इसे बल्ले की खान कहा जाता है। आगे बंटवारा चौक छावनी क्षेत्र से होकर हमने श्रीनगर में प्रवेश किया।
श्रीनगर अपनी राजधानी की तरह ही भीड़-भाड़ वाला शहर है। पर्यावरणीय खतरों ने इसकी सबसे खूबसूरत डल झील को भी बदसूरत कर दिया है। इसी झील के किनारे बने मार्ग पर चलते हुए तीर्थयात्रियों का समूह कश्मीर के एक गांव पहुंचा। हमारी गाडिय़ों केपीछे गांव के बच्चे ‘बम भोले पैशा दो’ कहते हुए भागने लगे। यह नजारा अनेक स्थानों पर देखने को मिला। आतंकवाद के बाद से यहां रोजगार न के बराबर रह गया है। अमरनाथ यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं से यहां केलोगों को रोजी-रोटी की आशा लगी रहती है।
इसके बाद हम गांदरबल पुलिस स्टेशन से आगे बढ़े। लेकिन सोनमार्ग की ओर बढऩे से हमें सुरक्षा कारणों से रोक दिया गया। हडक़ाते हुए पुलिसकर्मी सभी को वापस गंादरबल ले आए। वहां पहले से ही पुलिस की ज्यादती और रिश्वतखोरी के विरोध में श्रद्धालु नारेबाजी कर रहे थे। पुलिस उन्हीं को बालटाल तक जाने दे रही थी जिनके पास ज6मू कश्मीर पुलिस विभाग या सेना के किसी उच्च अधिकारी का लिखा अनुमति पत्र हो। इन्हीं सब कारणों से यात्रियों को श्रीनगर लौटकर रात हाउसबोट में गुजारनी पड़ी।
दूसरे दिन चूंकि हम आगे बढऩे को दृढ़ प्रतिज्ञ थे इसलिए मैं श्रीनगर में रहने वाले अपने एक परिचित डॉ. पी पी सिंह के पास पहुंचा। उन्हें सारी बात समझायी। उनका बहुत रुतबा है। उन्होंने बीएसएफ केवरिष्ठï अधिकारी से संपर्क कर हमारे जत्थे को बालटाल जाने की अनुमति दिलाई। दोपहर बाद हम सभी हजरतबल, जखूरा, गांदरबल चौक, कंगन सोनमार्ग से होते हुए बालटल पहुंचे। अगली सुबह करीब छह बजे हमारा जत्था पवित्र गुफा अमरनाथ के लिए पथरीले, बर्फीले, कच्चे, दुर्गम रास्तों से पैदल रवाना हुआ। एक के बाद एक पर्वत मालाओं को पार करते हुए जत्था आगे बढ़ रहा था। तभी ऑ1सीजन की कमी की वजह से हमारे एक श्रद्धालु की तबीयत अचानक बिगड़ गई।
करीब साढ़े तीन घंटे तक उसे सेना के कैंप में रखा गया। लेकिन बाबा भोलेशंकर की भ1ित के कारण कोई भी उनके इतने पास होने पर शायद ही वापस जाने की सोचे। उस श्रद्धालु ने भी आगे बढऩे की इच्छा जताई। अंत में उसकी नाजुक हालत को देखते हुए उसे खच्चर की सहायता से गुफा तक पहुंचाया गया। वहां पहुंचकर हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था। सिर पर विशाल स्वच्छ नीला आकाश, पैरों तले हिमालय की पवित्र भूमि और आंखों के सामने उनका निवास बनी गुफा। इसी के लिए हर श्रद्धालु यहां तक आने के सारे कष्टï सह लेता है। 1योंकि भोले बाबा केइतने करीब होने का अहसास कहा नही जा सकता बस महसूस किया जा सकता है।
हम सबको दूसरे दिन दर्शन करने थे। इसलिए वहां पहुंचकर रात हमने गुफा के आसपास लगाए गए शिविरों में गुजारी। दूसरे दिन सभी की इच्छा थी कि भगवान के दर्शन जितनी सुबह हो सके उतना अच्छा। प्रात: काल उठ कर स्नान किया और पूजा-अर्चना कर बर्फ से बने विशाल शिवलिंग के दर्शन किए।
पवित्र अमरनाथ की गुफा तक आने वाले केवल हम ही नहीं थे। हमारे पीछे एक और जत्था आ रहा था और बाकी आने को आतुर अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। तीर्थयात्रा जैसा महत्व रखने वाली अमरनाथ यात्रा पर हर साल लाखों लोग आते हैं। इस साल भी एक लाख से ज्यादा लोग यहां आ चुके हैं। यह सिलसिला रुकने वाला भी नहीं है। अपने महादेव के दुर्लभ दर्शन की इच्छा भला कौन भक्त छोड़ सकता है।
पौराणिक कथा के अनुसार तीनों लोकों के स्वामी भगवान शिव के शिवलिंग की खोज एक मुसलिम ने की थी। अमरनाथ की गुफा वह स्थान है, जहां भगवान शिव ने पार्वती को अमर होने की कथा सुनाई थी। भगवान शिव नहीं चाहते थे कि पार्वती के अलावा कोई जीवधारी इस अमर कथा को सुने। यही वजह थी कि भगवान शिव ने बर्फीले पहाड़ों में एकांत व निर्जन स्थान की खोज की और अमर गुफा को चुना। कहा जाता है अमर गुफा के आसपास कोई न आ पाए इसलिए शिव ने कालाग्नि को आदेश दिया था कि वह आसपास के पौधों को जलाकर राख कर देे। आदेशानुसार कालाग्नि ने ऐसा ही किया। लेकिन जहां भगवान शिव की मृगछाला बिछी थी उसके नीचे एक अंडा था। जब शिव पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे तो पार्वती को नींद आ गई और वह पूरी कथा नहीं सुन पाईं। भगवान शिव ने पार्वती से पूछा कि 1या उन्होंने कथा सुन ली। इस पर पार्वती ने इंकार किया तो भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने कहा तो कथा सुनाने के दौरान हुंकारा कौन भर रहा था? उसी समय देवमाया से अंड़े से एक तोता निकला और जान बचाने के लिए वहां से भागा। भगवान शिव भी उस तोते को मारने के लिए उसके पीछे-पीछे दौड़े। लेकिन सफल नहीं हुए। तोते की नजर व्यास की पत्नी पर जा पड़ी जो उस समय ज6हाई ले रही थी। तोता उनके मुंह में घुस गया। शिवजी ने व्यास जी से कहा कि उनका चोर उनके घर में गया है। इस पर व्यास जी ने अपनी पत्नी से पूछा तो उन्होंने कहा कि जब वह ज6हाई ले रही थीं तो उन्हें आभास हुआ था कि कोई चीज उनके मुंह में गई है। कहा जाता है कि कई वर्ष तक तोता व्यास जी की पत्नी के पेट में रहा और वह अमर व ज्ञानी हो गया। वह आज भी गुफा में दिखाई देता है।
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