दिल्ली के नजफगढ़ में पिछले दिनों रशियन कोमल सर्कस लगा हुआ था। यह सर्कस एक शहर से दूसरे शहर और एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश जा कर शो करता है। एक शहर से दूसरे शहर या फिर दूसरे राज्य में जाने पर सर्कस वाले सारा ताम-झाम समेट कर गाडिय़ों से पूरे कारवां के साथ चलते हैं। अगर पड़ाव किसी दूर प्रदेश का है, तो पूरे काफिले का खर्च लाखों में होता है। इस तरह सर्कस में काम करने वाले लोग मजबूरी में एक तरह से खानाबदोश-सी जिंदगी बसर करते हैं। उनकी रोजी-रोटी का साधन जो यही है।
इनका स्थायी ठौर-ठिकाना नहीं होता। आज यहां, तो कल न जाने कहां? घरों से दूर, धंधे की मजबूरी उनके दिल के डोर को बांधे रखती है। फिर यही जीवन रास आने लगता है। स्त्री-पुरुष कलाकार एक-दूसरे का हाथ थाम लेते हैं और घर बसा लेते हैं। इस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह अंतहीन सिलसिला बन जाता है।
कुछ ऐसी ही कहानी नेपाल की लक्ष्मी की है। गरीबी उसे भारत के सर्कस में खींच लाई। सर्कस में काम करते-करते वह उ8ाम की ओर आकर्षित हो गई। इन दोनों ने शादी कर ली। उ8ाम हवाई झूला और फायर डांस जैसे जोखिम भरे करतब दिखाता है और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले का रहनेवाला है। इनके अब दो बच्चे हैं। लक्ष्मी नहीं चाहती कि उसके बच्चे उसकी ही तरह सर्कस में काम करें।
बदली हवा का असर ड्रेस पर
बदले जमाने का असर सर्कस में काम करने वाली महिलाओं की ड्रेस पर भी पड़ा है। पहले लड़कियां स्लै1स पहन कर अपने आइटम किया करती थीं। धीरे-धीरे स्लै1स की लंबाई घटती चली गयी। अब तो छोटी कसी हुई फ्रिलवाली फ्रॉक या फिर छोटे स्कर्ट-4लाउज में अधिकतर आइटम दिखाए जाते हैं। यह ड्रेस पिछले काफी समय से चलन में है। धनलक्ष्मी कहती हैं, ‘1या करें, हवा ही कुछ ऐसी है।’
कभी सर्कस का बहुत क्रेज था। गांवों में लगने वाले मेलों की जान सर्कस हुआ करता था। परिवार के परिवार बैल गाडिय़ों, इक्कों में बैठ कर वहां उमड़े चले आते थे। सर्कस में शेर, रीछ जैसे तरह-तरह के जानवरों के साथ तरह-तरह के करतब दिखाए जाते थे। बच्चों को जानवरों के प्रति खास मोह होने के कारण सर्कस देखने अच्छी-खासी भीड़ जुट जाया करती थी। लेकिन अब सर्कस में पहले वाली बात नहीं रही। जानवरों पर होने वाले अत्याचारों को मद्देनजर रखते हुए इन्हें सर्कस शो में दिखाए जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। हालांकि कु छ सर्कस वालों ने उच्चतम न्यायालय से स्थगन आदेश भी लिया है। इसके बावजूद पशुओं पर कथित अत्याचार होने की बात को ले कर संबद्ध विभाग के कर्मचारी आ धमकते हैं और परेशान करते हैं। रशियन कोमल सर्क स के डाइरे1टर सतीश शर्मा बताते हैं, ‘इसी वजह से हमने अपने शेर और रीछ बंगलौर के चिडिय़ाघर में भेज दिए हैं।’ इससे सर्कस शो से होने वाली आय काफी कम हो गई है। हालांकि दर्शकों को रिझाने के लिए टिकट सस्ते कर दिए हैं और रिंग के करतब दिखाने के लिए रूस, उज्बेकिस्तान जैसे देशों के कई आर्टिस्ट के नायाब प्रदर्शन भी प्रस्तुत किए जाते हैं। फिर भी मंदी यथावत बनी हुई है। सर्कस के डाइरे1टर और मैनेजर ने पीड़ा भरे स्वर में बताया, ‘अगर यही परिस्थितियां बनी रहीं, तो सर्कस एक अतीत की चीज बन कर रह जाएगा।’
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